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नवटंकी / महेन्द्र मिश्र

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महाराज रघुवंश दुलारे हम तो दस तुम्हारे हैं,
सदा करों तुमरो सेवकाई पीछे पग नहीं धारे हैं।
चन्द्र टले औ सूर्य टले अब टले नहीं गिरिराज कभी,
टले नहीं यह बात हमारा सत्त पुरूष की बात कभी।
बातन में इज्जत मिलता है बातन झगड़ा बढ़ जाता,
बातन में सब संत खुशी हो बात बड़ाई नर पाता।
बातन से कोई लात भी भी खाता बात ऊंचाई नर पाता,
बात बनाकर जो कोई बोले आखिर में सब खुल जाता।
बातन पर सभी मालूम होता कपट बड़ाई पर जाता,
दोस्ती का यह रीब सदा है जैसे पानी दूध मिले।
मालिक की तो रीत यही है जन को सदा सहाय करे,
जल लकड़ी को नहीं डुबोता पालन का जब याद करे।