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नवयुग (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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नवयुग (कविता का अंश)
आओ बर्बरता के शव पर
अपने पग धर
खिलो हंसी बन कर
पीड़ित अधरों पर
करो मुक्त लक्ष्मी को
धनियों के बन्धन से
खोलो सबके लिए द्वार
सुख के नन्दन के
(नवयुग कविता से )