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नव आभास / नरेन्द्र शर्मा

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(१)
चीर कारा की सघन प्राचीर, किरन आई--ज्योति का ज्यों तीर!
चीर कारा की बधिर प्राचीर, ध्वनि सुनाई दी-बजे मंजीर!
किरण-शर ने बेध डाली तिमिर की प्राचीर,
नाद गूँजा है हृदय में अर्थगुण-गंभीर!

(२)
दृगों ने देखा तिमिर के पार--मैं स्वयं ढोता रहा निज भार!
युगल कणों में हुई झंकार--सहा मैंने स्वयं अत्याचार!
थे प्रयोजन मात्र, जिनको समझ कर आधार,
नाच नाचा किया छायावत विवश लाचार!

(३)
और भी दीखा प्रकाश विशेष, और भी कुछ सुना था संदेश!
दिखाऊँगा ज्योति का वह देश, बताऊँगा कथा जो अवशेष!
तोड़ उर-कारा, मलिन निज फेंकता हूँ वेश!
किरण ज्यों हिम-बिन्दु--मैं निज सोख लूँगा क्लेश!