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नव कानन, नित नूतन तरु-गन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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नव कानन, नित नूतन तरु-गन, नव पल्लव, नव लता-बितान।
नव-बिकसित नव कुसुम सुगंधित नव मधुकर कर नव कलगान॥
नव मनहर मधु रितु, नित नूतन मलयानिल, नव मुकुल रसाल।
नव-नव मधु, नव-नव कोकिल, नव तुलसि-मंजरी, नव बनमाल॥
नव मुरली-धुनि, नव आवाहन, नित-नवीन सुचि हास-बिलास।
नव ब्रज-तरुनी-गन, नव अरपन, मधुर सुचारु नित्य नव रास॥
नव नट-नागर, नव बर नागरि, नित नव प्रेम-सुधा, नव नेह।
नव माधुरी, नित्य नव लीला, नित नवीन बरसत रस-मेह॥