नव प्रभात! / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
सूर्य की रश्मियों का मधुर स्पर्श
रजनी का अंतिम प्रहर बीत चला है
चंद्रमा ने भी सहमति प्रदान कर दी है
अब विदा लेने का क्षण है।
पुनर्मिलन के वादों के साथ
प्रिय संध्या की मादक वेला में पुनः
अब रजनी धीरे-धीरे सरक चली है
जीवन-रस परिपूर्ण उन्मादित सूर्य रश्मियाँ
प्रकृति के कण-कण को
प्रेम और दुलार से जगा रही हैं।
कोमल अधखुली नन्हीं सुकोमल कलियाँ
अधखुले नयनों से निहार रही हैं
आनन्द उत्सव में मग्न नृत्य करते
उल्लासित जल प्रपात प्रचण्ड वेग से
चट्टानों को बाँहों में भर लेते हैं।
दुर्गम रास्तों से बलखाती नदियों का
कल-कल करता कर्णप्रिय संगीत
ताज़ी हवा के आंचल में झूमते
पेड़-पौधों का सुवासित विस्तार
बेल-लताओं के मादक आलिंगनबद्ध
फूलों के पराग के प्रति आसक्त
भौरों का प्रणय-गीत
प्रकृति नटी के सभी रंगों को
आत्मसात् किये बहुरंगी तितलियाँ
पक्षियों की पंक्तिबद्ध उड़ान।
स्वागत एवं अभिनन्दन करते सब हैं
इस नए विहान का
धन्य हो तुम रश्मियाँ जो आई हो
लेकर जीवन इस भू पर
नयी चेतना के साथ।
ये मेरे प्रभात के मधुर क्षण में
इस विश्व को प्रेम, शांति और आनन्द
के अवसर दे सकें शुभकामनाओं के साथ
स्वागत है तुम्हारा पुनः पुनः
नव प्रभात!!