भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नव प्रभात / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नव प्रभात हे!

नव प्रभात हे! नव जीवन में
नवल प्रकाश को।

नयी ज्योति की नयी किरण दो,
नयी सुरभि के नये सुमन दो;
नव नव कलिकाओं के अधरों
में नव हास भरो॥1॥

नव गुंजन के ये भ्रमर दो,
नयी राग के नूतन स्वर दो;
नये विहग के लिए नया
निर्मल आकाश करो॥2॥

नये रूप के ये रंग दो,
नयी राह के नये संग दो;
नयी उमंगों के पैरों में
नव उल्लास भरो॥3॥

3.11.60