भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नव वर्ष / संजय अलंग
Kavita Kosh से
उत्कर्ष असीम आया है
हर्ष नवीन लाया है
वर्ष नवीन आया है
स्पंदनों में आमोद है
धरा में प्रमोद है
जीवन में आनंद है
प्रसन्न हैं खग विहंग
फैली अल्हाद की तरंग
छायी चहुँ ओर उमंग
अतुल है आस
कुँठा का हो सन्यास
विपुल हो विकास
तुण्ड है धवल
मन है चपल
वर्ष है नवल