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नव विटप-वृन्त पर गुम्फित सौरभ- नमिता कमनीया लतिका / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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”नव विटप-वृन्त पर गुम्फित सौरभ- नमिता कमनीया लतिका।
प्रति सान्ध्य-उषा में मना रही है उत्सव सरस मदन-रति का।
हे प्रियतम! प्रिय वियोग-व्याकुल क्या होता कभीं नही वन है।“
बोले ”इस भू पर प्राण-सुधा वर्षण करते स्नेहिल घन हैं।
सखि, सरसिज-संकुल जल में शिशु-दल विहँस बिखेर सलिल-सीकर।
सखि-कंजमुखी के कम्बु-ग्रीव में पहना देता इन्दीवर।“
आह्लादितकर्ता! गये कहाँ, बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली॥82॥