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नश्तर सा लफ्ज़ मेरा ये अंगार हो तो हो / आदर्श गुलसिया

नश्तर-सा लफ्ज़ मेरा ये अंगार हो तो हो
मेरे कहे का उनसे सरोकार हो तो हो

ख़्वाहिश मेरी तो रोज़ यहाँ ख़ुदकुशी करे
तेरी नजर में यह कोई बाज़ार हो तो हो

मैं तो गुलाम रब का हूँ ज़रदार का नहीं
बेगार तुझको कोई स्वीकार हो तो हो

देखूंगा इश्क़ करके ये कैसा गुनाह है
पहले से ही गुनाह का अंबार हो तो हो

सब की मिलीभगत से ही इमदाद बिक रही
कहने को ये ग़रीब का आहार हो तो हो

बच्चों के वास्ते ही वह बेचे है अपना जिस्म
सबकी नजर में देह व्यापार हो तो हो

क़द भर मिली न मुझको तो चादर कभी कोई
ख़्वाहिश का मेरी कितना ही विस्तार हो तो हो

'आदर्श' तुझसे इश्क तो सदियों पुराना है
मैंने कहा है सच, तुझे इंकार हो तो हो