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नश्वर तारक / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
इन तारों की दुनिया में भी मिटने का अमिट विधान छिपा !
जीवन की क्षणभंगुरता को इनने भी जाना-पहचाना,
बारी-बारी से मिटना, पर अगले क्षण ही जीवन पाना,
आत्मा अमर रही, पर रूप न शाश्वत; यह मंत्र महान छिपा !
जलते जाएंगे हँसमुख जब-तक शेष चमक, साँसें-धड़कन,
कर्तव्य-विमुख जाना है कब, चाहे घेरें जग-आकर्षण ?
इस संयम के पीछे बोलो, कितना ऊँचा बलिदान छिपा !
हथकड़ियों में बंदी मानव-सम विचलित हो पाये ये कब ?
अधिकार नहीं, पग भर भी बढ़ना है हाय, असम्भव !
चंचलता रह जाती केवल दृढ़ तूफ़ानी अरमान छिपा !