नसीबन तेरे लिए / अभिनव अरुण
पिछली रात घन घिरे, पर बरसे नहीं
उमस में छत पर भी न जा सकी फूलमती
और चाँद तो जैसे बादलों की खिड़की के खुलने का इंतज़ार ही करता रह गया
आज फूलमती ने दो चोटियाँ की थीं जिन्हें गिरधारी छेड़ता था
लाल फीते की फुनगी भी बनायी थी करीने से
ढीली हो रही अंगिया के बंद कसे थे आज ही
घर पिसे आटे का ख़ूब चीनी डला हलवा अब भी ताज़ा था
उसकी उदासी भले भांप बन उड़ रही थी फ़िज़ा में
दो कटोरियाँ सजायीं थीं ठीक वैसे ही जैसे सीरियल में दिखाते हैं
सोचा चाँद-रात छतपर गिरधारी की यादों में खोयी खाएगी चुग चुग
पर छलिया निकला चाँद, मेघदूतों ने भी पाती नहीं पहुंचाई
पीछे बंसवार में निराश पेंडुकों का जोड़ा सो गया था यमन गाते गाते
मुद्दत हुए गिरधारी को मुंबई गए
जुहू चौपाटी पर पानीपुरी, चिक्कीदाना बेचते
कामायनी दो घंटे विलम्ब से ही सही
प्लेटफार्म संख्या सात पर रोज़ ही आती है
हज़ारों पुरबियों को लिए जिनकी पोटली भरी होती है
चूड़ी छागल टिकुली बिंदी
और सूटकेस के पिछवाड़े छिपाकर रखे गए रूमानी वस्त्रों से भी
फूलमती कजरी के गोबर से लीपती है आंगन
शुद्ध करती है अपने मन विचार
सोलह सोमवार और बाईस शुक्रवार पूरा होते ही
रुक न सकेगा गिरधारी इसके यकीन में जी रही
उद्यापन की तैयारियों में व्यस्त फूलमती अनजान है
ग्रांट ट्रंक रोड की चकाचौंध गिरधारी को खींचती है
‘लवंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए’
नौटंकी के मंच पर घूमर खेलती नाच - कन्या की याद हो आई उसे
झक्क सफ़ेद निकर टॉप हीरोइन सा सौन्दर्य
फूलमती की गंवई सरलता पर भारी है
गिरधारी की आँखें खुलती है आटे के हलवे की गंध से
चाल की चहल पहल शुरू हो गयी है
उम्मीदों की गुल्लक से धूल झाड़ गिरधारी
सी एस टी की लाइन में खडा है कामायनी गोदान और महानगरी का विकल्प लिए
स्टेशन के टी वी की तेज़ आवाज़ टिनहिया छत से टकरा गूंज रही है
मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है