भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नस्ले-आदम में सादगी भर दे / बुनियाद हुसैन ज़हीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नस्ले-आदम में सादगी भर दे
अब तो इन्साँ में आजिज़ी भर दे

बिस्तरे-मर्ग पे जो लेटे हैं
उनकी साँसों में ज़िन्दगी भर दे

हम ग़रीबों के आशियानों में
मेरे मालिक तू रोशनी भर दे

भीगी-भीगी रहें मेरी पलकें
इनमें एहसास की नमी भर दे

फ़स्ले-गुल और मैं तही-दामन
मेरे दामन में भी ख़ुशी भर दे

अब तो सारा चमन शबाब पे है
पत्ते-पत्ते में सरख़ुशी भर दे

तेरे नग़मे हों क्यूँ उदास ज़हीन
इनकी रग-रग में शाइरी भर दे