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नहर (2) / मदन गोपाल लढ़ा

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कंकर फेंका तुमने
छपाक!
और
विलीन हो गया वह
नहर के पानी में,
आश्चर्य क्यों ?
यह तो अभ्यास था
उसका
लपकने का फूलों को।