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नहर / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
नहर ओळखै है
आपरी हद
बा कोनी नदी
कोनी समंदर
सपनो ई नीं पाळै।
नहर जाणै है
माप जोख री जिंदगाणी
बारह हाथ चौड़ी
पांच हाथ ऊंडी
सात रोजा बारी
अर टेल रो सुकापो
उणरो काण-कायदो है।
थाकल घर री
भंवरी-कंवरी है नहर
टाबरपणै ई
हुय जावै स्याणी
आखी उमर खटै
हरियल पानड़ा सूं
ढ़ांपण वेगी
उघाड़ा धोरियां नै।