भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहर / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहर ओळखै है
आपरी हद
बा कोनी नदी
कोनी समंदर
सपनो ई नीं पाळै।

नहर जाणै है
माप जोख री जिंदगाणी
बारह हाथ चौड़ी
पांच हाथ ऊंडी
सात रोजा बारी
अर टेल रो सुकापो
उणरो काण-कायदो है।

थाकल घर री
भंवरी-कंवरी है नहर
टाबरपणै ई
हुय जावै स्याणी
आखी उमर खटै
हरियल पानड़ा सूं
ढ़ांपण वेगी
उघाड़ा धोरियां नै।