नहा करके जहां माहौल घर घर का बदलता है।
हमारे गांव से एक प्यार का दरिया निकलता है।।
बहा कर ले गया तूफान मजहब का गृहस्थी सब,
तमाशा देख कर बैठा मुकद्दर हाथ मलता है।।
कभी भी वह नहीं सँभले जिन्हें गिरना नहीं आया,
गिरा जो ठोकरें खाकर वही फिर-फिर संभलता है।।
चलो आवाज देकर के बुला लें हम पड़ोसी को,
मुसीबत में हमारा भी यही तो फर्ज बनता है।।
कहो उनसे न चिलमन इस तरह से डालकर निकलें,
अकेला देखकर उनको हमारा दिल मचलता है।।