भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहि बिसरैछ / कुमार पवन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ एको पलक लेल नहि बिसरैछ
जाड़क ओ ठिठुरैत कनकनायल भोर....
सघन कुहेसकेँ चीरैत मध्यम गतिएँ आगाँ बढ़ैत
बिलमल छल मुजफ्फरपुर टीसनपर
अवध आसाम एक्सप्रेस स्लीपरक कोच नम्बर सातमे
इक्का दुक्की लोक सभ टायलेट दिस अबैत जाइत
बाकी यात्री सभ मारने गुबदी अलसाइत....
चाहबला बिस्कुटबला अपन अपन समानक
सस्वर विज्ञापन करैत
कऽ रहल छल जड़ताकेँ भंग.... कि तखनहि ओ
चढ़ल छल बॉगीमे चुपचाप प्रायः दस बर्खक दुब्बर–पातर धुआ
कँचि आयल आँखि बहैत सुड़सुड़ाइत नाक
मैल–चिक्कट फाटल शर्टसँ
कहुना कऽ झँपने अपन देह गर्दनिसँ ठेहुन धरि
मुलकल कठुआयल खाली–खाली पएर....

निःशब्द लागल बहारय ओ बॉगीमे छिड़िआयल
प्रयुक्त–परित्यक्त पदार्थ सभ खाली
डिस्पोजेबुल कप खोइया चिनिञा बादामक
सिगरेटक मिझायल शेषांश सिट्ठी तमाकुलक
अँइठ–कुइठ भरल कागजी प्लेट....
मारि कऽ ठेहुनियाँ निहुरैत
निचला बर्थ तर ढुकैत
चीज वस्तु सभकेँ
एम्हर ओम्हर घुसकबैत एतऽ सँ ओतऽ धरि बॉगी भरि बहारैत रहल....
बहारैत रहल खुजि कऽ ट्रेन अपन गतिसँ बढ़ैत रहल....
खतम कऽ काज पसारि देने रहय ओ
अपन कठुआयल हाथ एम्हर बॉगी भरि पसरल देखि गंदगी
रातिमे जे यात्री सभ भेल रहथि परेशान
तनि गेल छलनि एखन हुनके सभक चेहरा देखि कऽ
एहि अवांछित याचककेँ क्यो असहज देखि छौड़ाक घिनायल
धुआ प्रश्नाकुल क्यो जे कोन लापरबाहक
ई अछि संतान देशक बेसम्हार जनसंख्याक प्रति
चिंतित क्यो विस्मित क्यो
आखिर विदाउट टिकट ई सभ चलैत अछि
कोना क्यो–क्यो तँ एकदम स्पष्ट छलाह–
चोरक गिरोहक तँ ई अछि एजेंट....

जाड़क ओहि कनकनायल भोरमे
कोच नम्बर सातक बोनाफाइड यात्री सभ
मसृण कम्बलक उष्णतामे सुटकल करैत रहलाह
धुरझाड़ विमर्श जनसंख्या विस्फोटपर
असुरक्षित यात्रापर बाल मजदूरीपर सरकारक असफलतापर
देशक दुर्दशापर
आ ओम्हर ओ
दस बर्खक गरजू अबोध मजदूर सभ
किछु सुनैत रहल सुनियो कऽ टारैत रहल
ठोरपर ठोर सटौने
एक–एक व्यक्ति लग जाइत रहल
अप्पन नान्हिटा खाली हाथ बेर–बेर पसारैत रहल....
नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ एको पलक लेल नहि बिसरैछ
खजूर–पातक बाढ़नि पकड़ने ओ
वाम हाथ याचनामे पसरल ओ
खाली–खाली दहिन हाथ आ
काँचीसँ भरल ओ चमकैत आँखि दून नहि बिसरैछ....।