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नहीं, मिरा आँचल मैला है / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
नहीं, मेरा आँचल मैला है
और तेरी दस्तार के सारे पेच अभी तक तीखे हैं
किसी हवा ने उनको अबतक छूने की जुर्रत नहीं की है
तेरी उजली पेशानी पर
गए दिनों की कोई घड़ी
पछतावा बनके नहीं फूटी
और मेरे माथे की स्याही
तुझसे आँख मिलाकर बात नहीं कर सकती
अच्छे लड़के
मुझे न ऐसे देख
अपने सारे जुगनू सारे फूल
संभाल के रख ले
फटे हुए आँचल से फूल गिर जाते हैं
और जुगनू
पहला मौक़ा पाते ही उड़ जाते हैं
चाहे ओढ़नी से बाहर की धूप कितनी ही कड़ी हो !