नहीं आ रही कविता (एक) / सुमन पोखरेल
एक कविता लिख डालने की चाह से बैठा हूँ
सृष्टि के कुछ सौन्दर्य को बटोर लूँ कह कर बैठा हूँ
ज़िन्दगी ख़ाली होने के बाद बचा हुआ
इस सौन्दर्यविहीन भोथरी आपा-धापी पे
जीने का अर्थ भर लूँ कह के बैठा हूँ ।
हर पल मृत्यु नाचनेवाला यह धूमिल उजियारे पे
अनहोनी हो सकने की यह अनिश्चितता में
किस वीभत्सता में से निकाल लाएँ सुन्दरता को
और लिख लें कविता !
हर तरफ प्रलय बिखरी हुई इस घड़ी
अरण्यरोदन से ज्यादा हृदयविदारक है
शहर की विक्षिप्त मुस्कान ।
मानव के आधिपत्य रहे आयें इस धरती पे
मानव होना कितना विषम, कष्टकर और पीडादायक !
जीने की चाह करना कितना बोझमय, असुरक्षित और विदीर्ण ?
कितना दुष्कर
कितना कठिन
कितना वीभत्स यह समय !
लेकिन
चाहे भूख खा कर रोग जिए
चाहे धूप ओढकर ताप जिए
चाहे वर्फ सो कर ठन्ड जिए
चाहे अभाव पी कर मृत्यु जिए
एक बार मानव हो चुकने के बाद
आजीवन अभिशप्त है मानव
एक लम्हा के लिए भी मानव न हो पाने के लिए ।
संवेदनाओं की गुफाओं में छुपा हुआ इस वक्त
आपस में झगडते हुए ऐसे सत्यों को बटोरकर
क्या क्या ना बनाऊँ मैं ?
समय सर्वाङ्ग नग्नता ओढ़कर सोया हुआ इस घड़ी
काले अक्षर भी लाल दिखाई देते हैं
नीले अक्षर भी लाल दिखाई देते हैं
खून से तर इस धरती में
पसीने के अक्षर भी लाल दिखाई देते हैं ।
स्वयम्भू के आँखों का
सिर्फ टकटकी लगाकर देखते रहने से क्या होगा ?
कबूतर उड़ नहीं सक रहे हैं
बारुद के लाल बोझ के नीचे दबकर ।
सर्वे भवन्तु सुखिन:, कहाँ है सुख?
माप्र गाम: पथो वयम्, कहाँ है रास्ते?
बिस्-मिल्लाह इर रहमान इर रहीम!, अब क्या शुरु करेँ?
कयामत ढाये हुए इस वक्त पे
शान्ति का एक शब्द से क्या करें, क्या न करें ?
यह असुरक्षित जीवन और मृत्यु का मध्यान्ह में
मानव ढूँढ़ रहा है अपने अन्दर से निकल भागे हुए मानव को
ख़ुद को मृत्यु का असुरक्षित बाजार तले बिछाकर ।
आत्मा निकल भाग कर बचे हुए
खोखले मानवों की इस भीड़ में
हर चीज मृत्यु बनकर खडी हुई है ।
ऐसे में सुरक्षाविहीनता ही सुरक्षा हो सकता है
जहाँ एक सुरक्षित मृत्यु मरा जा सकता है ।
ऐसे समय में
लिख भी लें तो
मृत्यु की कविता लिखी जा सकती है ।
आ भी गयी तो
निरीह जनता और असक्षम शासन के
षडयन्त्रों की कविता आ सकती है,
भूख और रोगों की कविता आ सकती है
नङ्गे शरीर और रुआंसी हँसी की कविता आ सकती है
और फिर एक लहर मृत्यु की कविता आ सकती है ।
मुझे जीवन सा जी पानेवाले जीवनों की कविता लिखने का मन है ।
समय मृत्यु में चढकर दौड रहा इस क्षण
नहीं आ रही है मेरे पास कोई कविता ।
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(नेपाली से कवि स्वयं द्वारा अनूदित)