नहीं कद्र की उस ने जज़्बात की
न ख्वाबों में आया न ही बात की
जो खुद की खुशी में रहा मुब्तिला
उसे क्या ख़बर मेरे हालात की
फ़सल खेत मे सूख सारी गयी
मगर आसमाँ ने न बरसात की
मुहब्बत से जब तुमने उँगली छुई
नहीं भूलती बात उस रात की
गिरह में बंधे चंद सिक्के थे जो
उन्होंने ही सारी खुराफ़ात की
नज़र ने नज़र से इशारा किया
खिला दी हवा पर हवालात की
लिया दिल दिया दिल नया क्या किया
सज़ा दे रहे आप किस बात की