नहीं कहूंगा मैं चाँद को रोटी / कुलदीप सिंह भाटी
नहीं कहूंगा मैं चाँद को रोटी,
नहीं ढूँढूंगा मैं प्रेम को चाँद में,
न ही मैं तोहफे में लानेे का वादा करूँगा कभी चाँद को।
चाँद की चमक से सजी उपमाओं और बिम्बों वाली कविता से
नहीं बटोरना चाहता हूँ
मैं सुर्खियाँ, तालियाँ और प्रशंसाएँ।
क्योंकि मैं नहीं रचना चाहता
ऐसे सपने अपनी उन कविताओं में
जो किसी भूखे को बहलाया करे,
जो प्रेमी को भ्रमित करे,
या जो किसी प्रेयसी से छल करे।
मैं चाँद को चाँद ही कहूंगा
जो दूर आसमान में रात में निकलता है
और उजाले की आहट पाते ही छिप जाता है।
मेरी कविताओं में उस चाँद की जगह होगी
भूखे की थाली में रोटी,
दो प्रेमियों के हाथ में एक दूजे का हाथ और
तोहफे में ज़िन्दगी भर साथ का अटूट विश्वास।
जिससे इन वास्तविकताओं से मैं पा सकूं
सृजन का सुकून, तृप्ति और
कर सकूं पीड़ाओं का प्रतिकार।