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नहीं काम से कभी डरो / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अम्मा हुईं आज बीमार,
लगा आफतों का अंबार।
सबको चाय पिलाए कौन,
रोटी आज बनाए कौन।
पापा को ऑफिस जाना,
लंच पैक भी ले जाना।
बैठे सर पर हाथ धरे,
सबके मुंह उतरे-उतरे।
ब्रेक फास्ट ना बन पाया,
मैं शाला ना जा पाया।
गुडिया कि है लाचारी,
कौन कराए तैयारी।
पर उसने हिम्मत बाँधी,
उठी चल पड़ीं बन आंधी।
बोली चाय बनाती हूँ,
सबको अभी पिलाती हूँ।
उठो-उठो सब काम करो,
नहीं काम से कभी डरो।
सब पर भूत सवार हुआ,
किचिन रूम गुलजार हुआ।
खाना बहुत लजी़ज़ बना,
रखा लंच अपना-अपना।
पापा ऑफिस जाएंगे,
हम भी दौड़ लगाएंगे।