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नहीं ख़त्म भी हो सफ़र चलते-चलते / गुलाब खंडेलवाल

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नहीं ख़त्म भी हो सफ़र चलते-चलते
कभी मिल ही लेंगे मगर चलते-चलते

हटा भी लो परदा ज़रा सामने से
तुम्हें देख लें भर नज़र चलते-चलते

अभी तो बहुत दूर थी दिल की मंज़िल
रुके क्यों क़दम राह पर चलते-चलते

कुछ ऐसी ही थी बेबसी माफ़ कर दो
हुई चूक कोई अगर चलते-चलते

गुलाब! उनकी तुमने झलक भी न देखी
सुबह से हुई दोपहर चलते-चलते