भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं गर्भगृह ऐसा, जिसमें नाथ! तुम्हें पधराऊँ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं गर्भगृह ऐसा, जिसमें नाथ! तुम्हें पधराऊँ।
नहीं उपकरण पूजाके कुछ, जिनसे पूज रिझाऊँ॥
नहीं स्वर-सुधा फटे कण्ठमें, जो मैं गाय सुनाऊँ।
नहीं वाद्य, जो नाथ! तुम्हारे समुख सरस बजाऊँ॥
इस सराय-से घरमें प्रभु! तुम आ‌ओ तो आ जा‌ओ।
बिना बुलाये, पूजाकी कुछ बात न मनमें ला‌ओ॥
पामर-परित्राणका अपना मंगल विरद बढ़ा‌ओ।
इस पद-विमुख अधमपर बरबस कृपा-सुधा बरसा‌ओ॥