भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं चाहिए सीख बड़ों की / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
आओ बच्चो आओ चलकर
उस बच्चे के संग भी खेलें
वह अकेला बैठा कब से
उसको भी टोली में कर लें
माँ भी और पिता भी उसके
लगे हुए हैं मजदूरी में
सड़क किनारे छोड़ा बच्चा
सच जानों बस मजबूरी में
आओ बच्चो मिलकर कह दें
बच्चे को बच्चा रहने दो
जाति धर्म व धन के विष से
बच्चे को तो बचा रहने दो।
क्यों लड़ें हम आपस में ही
कठपुतली से आप बड़ों की
हम ऐसे ही छोटे अच्छे
नहीं चाहिए सीख बड़ों की।
आओ बच्चो आओ मिलकर
हम खिला दें प्यार की कलियाँ
आओ मिलकर हम महका दें
इस दुनिया की सड़ती गलियाँ।