सूख-सूख गए
सांप-सलीटा
बिच्छू-कांटा
सब धरती की कोख में;
जो निकले थे कभी
बूंद भर बरसात में ।
खोहों में
भटक-भटक मर लिए
जान लिए हाथ में ।
नहीं जन्मेंगे
अब कभी थार में
रहा जन्मना
अगर उनके हाथ में ।
सूख-सूख गए
सांप-सलीटा
बिच्छू-कांटा
सब धरती की कोख में;
जो निकले थे कभी
बूंद भर बरसात में ।
खोहों में
भटक-भटक मर लिए
जान लिए हाथ में ।
नहीं जन्मेंगे
अब कभी थार में
रहा जन्मना
अगर उनके हाथ में ।