नहीं जाओ / प्रदीप शुक्ल
नहीं जाओ अभी तुमसे
ज़रा कुछ बात करनी है
थके सूरज को जाने दो
खड़ी है साँझ सिरहाने
खिलेगी रात रानी बस
अभी आँगन को महकाने
चढ़ा गोधूलि की चादर
अभी सो जायेंगे पत्ते
ललाया ताल का चेहरा
लगा बेबात शरमाने
अभी जाते हुए सूरज की
ये मुस्कान झरनी है
बदल कर साँझ अब कपड़े
ज़रा सा गुनगुनायेगी
झुके आकाश के डर से
लजा कर भाग जायेगी
अभी ये लौटते पंछी
सुनायेंगे कहानी फिर
अभी होगी दीया बाती
तभी तो रात आयेगी
ज़रा ठहरो अभी सपनों
से तेरी आँख भरनी है
नखत झूलेंगे बस आकर
अभी अम्बर अटारी में
दिखेगा चाँद का चेहरा
अभी सोया खुमारी में
अभी बैठो ज़रा, फिर चाँदनी
मिलकर निहारेंगे
विदा की बात मत करना
अभी मिलने की बारी में
रुको भिनसार की किरनें
तुम्हारे हाँथ धरनी हैं
नहीं जाओ अभी तुमसे
ज़रा कुछ बात करनी है