नहीं जिनके नयनों में लाज
वही आसन पर रहे विराज
सुनेगा कौन तुम्हारी व्यथा
कहोगे किससे दुख की कथा
रहो सहते चुप रहकर यथा
अकेले अपनी पीड़ा आज
कहाँ हैं सुख के स्वर स्वच्छन्द
भाव है किसके कर में बन्द
टूटते हैं बन-बनकर छन्द
गिरी है कवि के मन पर गाज
18.08.1962