भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं जिनके नयनों में लाज / कृष्ण मुरारी पहारिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं जिनके नयनों में लाज
वही आसन पर रहे विराज

              सुनेगा कौन तुम्हारी व्यथा
              कहोगे किससे दुख की कथा
              रहो सहते चुप रहकर यथा

अकेले अपनी पीड़ा आज

              कहाँ हैं सुख के स्वर स्वच्छन्द
              भाव है किसके कर में बन्द
              टूटते हैं बन-बनकर छन्द

गिरी है कवि के मन पर गाज

18.08.1962