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नहीं डाँटें / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
बात जब हो नहीं सही, डाँटें,
देखें ग़लती जहाँ, वहीं डाँटें।
घर में आये हों दोस्त जब मेरे,
कम-से-कम आप तब नहीं डाँटें।
राह चलते, दुकान पर, घर में,
है न अच्छा कि हर कहीं डाँटें।
आप के बाद मैं हुआ पैदा,
ग़लती मुझसे हुई यही, डाँटें।
ग़लतियाँ आप भी तो करते हैं,
मुझसे भी हो रहीं, नहीं डाँटें।