रोहतक को मुक्त कराने के लिए मुगल बादशाह बहादुर शाह जपफर ने 24 मई 1857 को सेना की एक टुकड़ी के साथ तफजुल हुसैन को रोहतक भेजा। विद्रोही सेना का मुकाबला न कर पा रोहतक का डिप्टी कमिश्नीर जी.डी. लाक व दूसरे अफसर पानीपत की छावनी की तरफ भाग निकले। कचहरी और सरकारी दफतर जला डाले। बागियों ने महम और मदीने पर कब्जा कर लिया। एक दिन एक किसान और उसकी पत्नी अंग्रेजों के बारे में बात करते हैं। पति अंग्रेजों के हक में था मगर पत्नी खिलाफ थी। क्या बताया भलाः
नहीं देता तनै दिखाई इननै सिर पै चढ़ावै क्यों॥
भारत देश आगे बढ़ाया अंग्रेजां ने बिसरावै क्यों॥
न्यारे-न्यारे रजवाड़े थे कई देश आड़े बस्या करते
एक नै लेते अपनी गोदी दूंजे उपर ये हंस्या करते
तीर निशाने आपस के मैं ये रजवाड़े कस्या करते
बन्दर बांट मचा फिरंगी भारत नै ये डस्या करते
नीच फिरंगी मनै बता पिया तनै इतना भावै क्यों॥
अंग्रेजां ने सुण गोरी भारत राज्य एक बनाया सै
रेल और सड़को का इननै गहरा जाल बिछाया सै
बिदेशां नै मेहनत करी ना पाछै कदम हटाया सै
देख इनकी जीवन शैली मेरा तो सिर चकराया सै
कहै अंग्रेज नै फिरंगी इननै लुटेरे बतावै क्यों॥
भारत बणा कई देशां का भोतै बढ़िया काम करया
रेल बिछाकै म्हारे देश मैं अपने देश का गोदाम भरया
कच्चा माल लेग्या लाद कै म्हारा मजदूर तमाम मरया
लगान के कानून बदले निशानै लजवाणा गाम धरया
भूरा निंघाइया लड़े पिया बता उननै तूं भुलावै क्यों॥
मनै के बेरा जो कुछ देख्या वोहे मनै बताया गोरी
इतनी गहरी बात कदे मै समझ नहीं पाया गोरी
इनका जमींदार सै सूरता उसनै मैं बहकाया गोरी
रणबीर बरोने आला कहै तनै मैं समझाया गोरी
सारे सोचा मिल बैठ कै फिरंगी लूट कै खावैं क्यों॥