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नहीं नापाक, नालायक खलक में मुझसा को‌ई और / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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नहीं नापाक, नालायक खलकमें मुझसा को‌ई और,
भरा लाखों गुनाहों से दिखाऊँ मुँह तुझे कैसे?
इबादत की नहीं तेरी, भूलकर भी कभी मैंने,
सताया तेरे बंदोंको, सामने आऊँ मैं कैसे ?
मुहबत जालिमों से की जोड़ इखलास पुरे दिलसे,
किया इतलाफ नेकोंसे, बताऊँ क्या तुझे कैसे?
डराया बेगुनाहोंको, औ लूटा बेबसोंको खूब,
मिटायी आब आदिलकी, करूँ अब क्या, कहो, कैसे?
छोड़ खिदमत खुदा! तेरी, करी अ?तियार बेशर्मी,
बेवफा बन करी चुगली, बचाऊँ अब, कहो, कैसे?
मिटा इन्सानियत सारी, बना खूँखार बेहद मैं,
जान ली बेजुबानोंकी, डरूँ अब मैं नहीं कैसे?
बितायी आशना‌ईमें उम्र, हो बेहया पूरा,
मागूँ अब किस तरह माफी, सजासे अब बचूँ कैसे?
रहमदिल, ऐ मेरे मालिक! करो अब परवरिश मेरी,
छोड़ परवरके दरको मैं जाऊँ अब गैर पै कैसे?