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नहीं बदला, बहुत दिन से कुछ नहीं बदला / यश मालवीय
Kavita Kosh से
नहीं बदला,
बहुत दिन से कुछ नहीं बदला
वही अंधे मोड़
रस्ते,वही पागलपन
स्नेह छोटों को,
बड़ों को वही पालागन
वही आँधी में हहाता,
पेड़ ज्यों पगला
वही दर-दीवार,
दरवाज़े,वही खिड़की
बस्तियों में बसी,
कोई याद बीहड़ की
है वही दिन,
और सम्बोधन वही पिछला
रोशनी का वही
टूटा सा इकहरापन
वही चौका
और चौके में रखे बर्तन
कमल-दल,
तालाब का पानी वही गँदला।