नहीं बदला,
बहुत दिन से कुछ नहीं बदला
वही अंधे मोड़
रस्ते,वही पागलपन
स्नेह छोटों को,
बड़ों को वही पालागन
वही आँधी में हहाता,
पेड़ ज्यों पगला
वही दर-दीवार,
दरवाज़े,वही खिड़की
बस्तियों में बसी,
कोई याद बीहड़ की
है वही दिन,
और सम्बोधन वही पिछला
रोशनी का वही
टूटा सा इकहरापन
वही चौका
और चौके में रखे बर्तन
कमल-दल,
तालाब का पानी वही गँदला।