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नहीं बीतोगी तुम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
यह सदी बीत भी जाए
नहीं बीतोगी तुम
दिशा में और काल में
गूँजता रहेगा पक्षियों का संगीत
इसी तरह जैसे लाख-लाख वर्षों से
धरती ठण्डी होती रहेगी
और सूरज भी
और हम-तुम इसे गर्म करते रहेंगे
फिर-फिर
मुझमें बची रहोगी तुम
और तुम में मैं
जैसे धरती में बची रहती है
जन्म देने की शक्ति
और वृक्ष में बचा रहता है बीज
और बीज में जीवन
और जीवन में प्यार
और प्यार में जीवन
यह सदी बीत भी जाए
नहीं बीतोगी तुम ।