भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं भूलती / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
वह मुड़कर देखती है
अतीत की ओर नहीं, प्रेम की ओर;
वह ललककर देखती है आगे
भविष्य की ओर नहीं, प्रेम की ओर;
वह दरवाज़े पर उदास, अपलक
प्रतीक्षा करती है प्रेम की।
वह नहीं भूलती
अपने कष्ट,दुख, निराशाएँ
फिर भी
वह नहीं भूलती
अपना प्रेम,
अपनी प्रतीक्षा,
अपना सुख।