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नहीं मालूम कितनी बढ़ गई है / विवेक बिजनौरी
Kavita Kosh से
नहीं मालूम कितनी बढ़ गयी है,
मगर सच है उदासी बढ़ गयी है
ये हासिल है क़रीब आने का अपने,
हमारे बीच दूरी बढ़ गयी है
तुम्हारी याद का मौसम है बदला,
अचानक कितनी सर्दी बढ़ गयी है
तुम्हारे बाद सब कुछ ठीक सा है,
फ़क़त थोड़ी सी दाढ़ी बढ़ गयी है
ख़मोशी बढ़ गयी है कुछ दिनों से,
यकीं मानो कि काफ़ी बढ़ गयी है