भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं रहेंगे रास्ते / हरे प्रकाश उपाध्याय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं
इतने से नहीं होगा
अभी और पडेंगे छाती पर हथौडे
और दिल फेंकेगा फच फच खून.....
अभी और आग लगेगी
और रास्ते जो हैं
नहीं रहेंगे
अभी घिरकर जलना है

अभी तो भूमिका बाँध रहे हैं कई कसाई
छुरे पजा रहे हैं
और धार जांच रहे हैं

थोडा ठहरो
देखोगे जब कतरेंगे कलेजे
आग में भूनेंगे
तश्तरी में सजाकर बाजार में बेचेंगे
अभी ठहरो

तुम जो सोच रहे हो
तुम्हारी बारी नहीं आयेगी
आयेगी
आयेगी वे समूची आदिम नस्ल के विरोधी हैं

वे साँस लेते देखेंगे लकडी को
तो उसे भी ‘रेप’ देंगे
वे मद में चूर हैं
वे छोडेंगे नहीं पानी को
चाहे वह आक्सीजन में हो या हाइड्रोजन में
मिट्टी में हो या हवा में

धीरे धीरे वे पैठ रहे हैं हमारे बीच
हमें प्रलोभन देते हुये
हमें गुड खिला रहे हैं
पर अभी , अभी वे नाथेंगे हमें
और हमने तो बता दिये हैं उन्हें
सारे ठिकाने अपने
यहाँ दिल है, यहाँ दिमाग
यहां हम रहते हैं यहां हमारी जान