नहीं वाद कोई यहां निर्विवादित
कि प्रतिवाद हर वाद करता अनिश्चित
करें आप स्वछन्द चिन्तन न कुंठित
कि ऐसे किसी का नहीं हो सका हित
जहां मानसिक ग्रन्थियों की शिलाएं
वहां ज्ञान विकसित न होगा कदाचित
स्वंय पर न अंकुश कभी लग सके तो
करें फिर किसी और को भी न बाधित
सदाचार करता सदा अंत तम का
अनाचार से कब हुआ वो पराजित
रहें टूटती रूढियां सब पुरातन
तभी हो सके शाश्वत सत्य स्थापित
सकल जग सभासद असल नृप निरंजन
करेगा प्रलय काल प्रस्ताव पारित