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नहीं सुनाई देता है क्यूँ भीषण हाहाकार तुम्हें / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
नहीं सुनाई देता है क्यूँ भीषण हाहाकार तुम्हें ।
भूल हुई जो बना दिया है सूबे का सरदार तुम्हें ।
रिश्वत बिना किसी दफ़्तर में काम नहीं होता कोई,
नहीं दिखाई देता है क्यूँ फैला भ्रष्टाचार तुम्हें ।
नारी-उत्पीड़न में सूबा अव्वल नम्बर पर आया,
फिर भी शर्म नहीं आती है लानत है धिक्कार तुम्हें ।
केबिनेट में भ्रष्ट मन्त्री छाँट-छाँट कर रख छोड़े,
लूट रहे क्या नहीं दिख रहे दौलत के दरबार तुम्हें ।
पोल खुलेगी जिस दिन उस दिन हश्र सामने आएगा,
मुर्दे सभी गवाही देंगे होगा कारागार तुम्हें ।