नहीं है कोई अधम / शैलेन्द्र चौहान
उस दिन
राजकमल ने जब मुझसे कहा
‘अब मैं जीना नहीं चाहता, मर जाऊँगा’
मेरे कान एकदम खड़े हो गए थे
नहीं हो रहा था विश्वास
ऐसा बोलनेवाला व्यक्ति
राजकमल है
मैं जानता था, उसका मन
बहुत संवेदनशील व कोमल है
जिस तरह उसने
प्रतिरोधी शक्ति बनकर
जीवन की तमाम
विसंगतियों और त्रासदियों को
लगा दिया था किनारे
मुस्कराया था वह हर बार
सहज आत्मविश्वास से
खीझता जरूर था
आगे-पीछे, जब-तब
डरता भी था
जुगत में रहा करता था
पतली गली से खिसक जाने की
लेकिन
ऐन मुसीबत के वक़्त
वहाँ होता था
कोई और ही राजकमल
जो बहुत धैर्य और विवेक से
निपटता था मुश्किल घड़ियों में
राजकमल
बुचड़ी मैली कमीज़
फटा पाजामा पहने
बहुत शान से आता था स्कूल
किसी भी ग्रंथि से रहित
तमाम सीढ़ियाँ फलाँगता
पोस्टग्रेजुएट राजकमल
चुन लिया गया
प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए
वह खुश था, पर
उसने प्रकट नहीं किया
हम लोगों की बेरोजगारी पर
न उसने दया दर्शाई
न सफलता का गर्व
ऐसा नहीं था वह
बदल गया हो अंदर से
या मन में प्यार ही कम हो चुका हो
हाँ, उस तक पहुँचनेवाले
सारे भावनात्मक स्रोत
हो चुके थे बंद
बहुत एकांगी और यांत्रिक रूप से
हो गया था वह रूढ़
घुटने लगा था मन-ही-मन
जैसे लग गया हो घुन
कभी महसूसने लगा था
दोस्तों, हमदर्दों की
जैसे-जैसे
चढ़ता गया वह ऊपर
कटता गया मित्रों से
माँ-बाप, भाई-बहन से
यहाँ तक कि
पत्नी और बच्चों से भी
घर में आहिस्ता-आहिस्ता
पैठती आधुनिकता
बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ, प्रतिद्वंद्विता
संपन्न और ग्लैमरयुक्त समाज से
चल रहे हों जब
दो पाट तेजी से
रोक ही कैसे सकता था वह
पिसने से अपने आप को
जब
वह आया मेरे पास
मैं आराम से स्लीपिंग सूट पहने
स्प्राउट खाते हुए
कॉफी की चुस्की लेने में था मगन
वह हमेशा की तरह मुस्कराया
शांत, गंभीर चेहरे से
टपक रहा था
आक्रोश, आत्मविश्वास
कड़कपन
नहीं भाँप सकता था मैं भी मजमून
लिफ़ाफे़ के भीतर का
अंदाज़ ही नहीं लगा सकता था मैं
दर्द से कराहते हुए
निरीह, बेबस और व्यग्र व्यक्ति का
जो छुपा हुआ था
राजकमल के भीतर
इसलिए
जब उसने कहा
‘मैं मर जाऊँगा’
तय नहीं कर पाया
क्या कहूँ उससे?
दया और करुणा के बाद
परपीड़ा का भाव पनपा मन में
‘मरना है तो मरो’
यह सोचता
ऊपरी मन से हमदर्दी जताता
उसे समझाने की
कोशिश कर रहा था
समयानुकूल
व्यावहारिक दृष्टि के तहत
आगे मैंने उससे
काट ली थी कन्नी
आखि़र यह उसका
व्यक्तिगत मामला था
राजकमल के प्रति आज
पैदा हुई है मेरे मन में
सच्ची सहानुभूति
यह अलग बात है
राजकमल अब
इस दुनिया में नहीं है।