नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िया के दरख़ुर मेरे तन में / ग़ालिब
नहीं है ज़ख़म कोई बख़िया के दरख़ुर मिरे तन में
हुआ है तार-ए अशक-ए यास रिशतह चशम-ए-सोज़न में
हुई है मान-ए ज़ौक़-ए-तमाशा ख़ानह-वीरानी
कफ़-ए सैलाब बाक़ी है ब रनग-ए पुनबह रौज़न में
वदीअत-ख़ानह-ए बेदाद-ए काविशहा-ए मिज़हगां हूँ
नगीन-ए नाम-ए शाहिद है मिरे हर क़तरह ख़ूं तन में
बयां किस से हो ज़ुलमत-गुसतरी मेरे शबिसतां की
शब-ए-मह हो जो रख दूं पुनबह दीवारों के रौज़न में
निकोहिश मान-ए-बेरबती-ए-शोर-ए जुनूं आई
हुआ है ख़नदह-ए अहबाब बख़यह जेब-ओ-दामन में
हुए उस मिहर-वश के जलवह-ए तिमसाल के आगे
पर-अफ़शां जौहर आईने में मिसल-ए ज़ररह रौज़न में
न जानूं नेक हूँ या बद हूँ पर सुहबत मुख़ालिफ़ है
जो गुल हूँ तो हूँ गुलख़न में जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में
हज़ारों दिल दिये जोश-ए जुनून-ए इश्क़ ने मुझ को
सियह हो कर सुवैदा हो गया हर क़तरह ख़ूं तन में
असद ज़िनदानी-ए तासीर-ए उलफ़तहा-ए ख़ूबां हूँ
ख़म-ए दसत-ए नवाज़िश हो गया है तौक़ गरदन में