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नहीं / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
नहीं
आंख की हद तक
कहीं भी तो नहीं सागर
फिर भी तू
उफनती
भागती है सांय-सांय.....सांय.....
कहां किसमें
जा समाएगी
ओ रेत की नदी