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नाइटिंगल / स्मिता तिवारी बलिया

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घोर भयावह
मध्य रात्रि में,
दुनियादारी के प्रपंचों से
सहमी हुई;
 छोटी सी
"नाइटिंगल";
हर-रोज
धीरे-धीरे
तोड़ती है अपना दम...
कूकने के बजाय,
बेतहाशा
सिसकती है,
उड़ेल देती है
अपना असहनीय दर्द
कू कू कू के स्वर में;
कहती है
दुनिया
जिसे
 "गीत"...