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नाई बहार / 13 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

भिखारी ठाकुर अपने को कहीं-कहीं 'भिखारी दास' कहते हैं, जिसपर लोग एतराज करते हैं। इसी का प्रतिकार करते हैं।

वार्तिक:

जजमानों का विवाह-जनेउ में मैं नाई वंश का झलास, अथवा विचाली को सात झूठी चीज को हाथ से तैयार कर के अस्थापन करते हैं। वही सप्तऋषि हैं-काश्यप, अत्रै, जमदग्नि, विश्वामित्र, बसिष्ठ, भारद्वाज, गौतम। वहाँ पर चौका की रचना, गौरी-गणेश की स्थापना कराके उस जगह को काम करता हूँ, तब दास कहलाने में क्या वजह हैं? अपने मुख से अपना बड़ाई कह रहा हूँ। दूसरे के लिए नहीं; खास उन्हीं के जो मेरी निन्दा में किताब छपवाते हैं। मैं अपने को 'दास' लिखा हूँ, मुझे मालूम होता है कि 'दास' शब्द अधीनताई है। रामचन्द्रजी परशुरामजी को दासताई किये हैं कि नहीं; पर लिखा है-

चौपाई

'नाथ शम्भू धनु भंजन हारा, होइहें कोउ एक दास तुम्हारा॥'