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नाई बहार / 3 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

पारंपरिक श्राद्ध-कर्म में नाई की भूमिका, छूत के खिलाफ युद्ध में नाई का योद्धा रूप में वर्णन

चौपाई

लिपला पर केहू हवन करावल। दाम लेल केहू असहीं धावल॥
जजमनिका के नाउ नाव। रखलन इज्जत के सब भाव॥
अघनारा के रुखर धारं दूसर जात केहू पावे ना पार॥
पातक में नाउ अइलन काम। क्षुधा कारन सीताराम॥
छुरा छूत खेदत पल माँहीं। नरक नहरनी राखत नहीं॥
कइंची कवच नाई दल बीरा। पातक समर चाहत रणधीरा॥
सिली शिल्पकार में नागर। रहत शीतल कर धार उजागर॥
धार वार के मार गिरावे। करी सिंगार भ्रम-भूत बहावे॥
जंगल केस देश चहुँ फेरा। जहँतहँ लिख-करत बहु डेरा॥
गिरत खून ढील भागल जाइ. टिक परबत में रहत लुकाई॥
बजत चमरुआ बाज चमउटी. एही बिधि उतरत भार-भखौटी॥
पिण्डा तर अग्नि भरमावत। सोई समर में धुआँ उड़ावत॥
डूमिहा-डाबर में बा पानी। कर कमकर पहुँचावत आनी॥
विकरा में जो वसतर होई. पहिरत वीर समर में सोई॥
अन्न-पानी जो होखत दाना। भोजन करत भूत बलवाना॥
दिया देत पिण्ड तर बारी। रोशनी होत युद्ध में भारी॥
जूता-छाता-सेज्या दाना। पहिरत सैन कर बलवाना॥
दाही दान देत पंचमेवा। करत अहार भूत अरू देवा॥
इत लसकर लोखर ले घूमत। मारत महावर मदे झूमत॥
लगन लोखरे के कइसन सोहत। छत्तीसो खोम देख के मोहत॥
नाउ पातक दोउ राजधानी। होखत समर देखत सज्ञानी॥
डिग्री भइल नाई दल केरा। लोक-वेद गावत बहुतेरा॥
आरा-बलिया-छपरा-पटना। एहीं बोल में कइलीं रटना॥
भोजपुरिया ह बोली खास। पंच गौसैयाँ कइ दऽ पास॥
विद्या के ना जानी हाल। माफ करऽ गौरी के लाल॥
कहे 'भिखारी' बतिया खारा। सुनि के गुनी सकल परिवारा॥

दोहा

सुनी-गुनी समुझीं निक, धुनलीं बहुत तून।
खाय मजूरी मांगे का बेरी, नैना से निकसत खून॥