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नागरजा / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

केको भाग लालो, केन करलो स्नान।
तब बोदा सांवल भगीवान-
तेरा बांजा वैराट मौसा, मैं चलदू बणौल।
यनी फैलाये भगवानन लीला-
गायों का करेन गोठ, भैसू का खरक
नन्दू का यख लगीन दूध का धारा।
दूध का लगीन, नाज का कोठारा<ref>कुठार, भंडार</ref>।
बालपन मा ही बणी गये कृष्णा-
नन्दू को ग्वैरे<ref>ग्वाला</ref>, गायों को गोपाल।
गऊ चुगौंदू मोहन, वांसुली बजौंदू।
चला भाई ग्वैर छोरौं, मथुरा वृन्दावन,
बांसुली बजौला, कौथीक<ref>विनोद, कौतुक</ref> करला।
तब बजाई कृष्णा त्वैन मोहन मुरली,
तेरी मुरली सुणीक कामधेनुन चरणो<ref>चरना</ref> छोड़याले,
सभी ग्वैर छोरा मोहित करयाला।
कुन्दन शैर मंग तेरी मुरली सणी,
रुक्मणी रोज रंदी सुणन लगीं।
कोंपलू<ref>कोंपल</ref>-सी फल-रुक्मणि सोना की-सी टुकड़ी।
ताल-सी माछी<ref>मछली</ref>, सरप की-सी बच्ची।
सुण्याले तैंन मुरली अनबन<ref>असंख्य</ref> भांती,
मन होइगे मोहित, चित चंचल।
भौ<ref>चाहे</ref> कुछ होई जाई मैंन मुरल्याक<ref>मुरलीवाला</ref> जाण।
एसी एकी बांसुली अफू<ref>अपने आप</ref> कनू होलू?
पाणी की-सी बूंद की, नौण<ref>मक्खन</ref>-सी गोंदकी,
तै दिन वा रुकमणि लैरेन्दी<ref>सजी-धजी</ref> पैरेन्दी,
चलदी चलदी आइगे अघबाट।

कृष्ण भगवान इना रैन छली,
बीच बाट मां नदी दने उपजाई।
अफू ह्वैगे भगवान धुनार<ref>नदी पार कराने वाला</ref>-सी लम्बो।
लुहार-सी कालो, भाड़ को-सी मुछालो<ref>लकड़ी</ref>।
तबरेकरुकमणि भली बणीक बांद
तख<ref>वहाँ</ref> मुंग<ref>पर</ref> एक बोलण लैगे-
हे धुनार छोरा तराई<ref>पार करा</ref> दियाल<ref>दे</ref>।
तराई क्या लेण छोरा तराई बोल्याल?
तराई क्या बेल्ण मैंन, भौं कुछ<ref>जो-चाहे</ref> दियान।
जनानी की जात, डोंडा<ref>नाव</ref> मा बैठीगे,
आधी गाड बीच कृष्ण भगवान
डोंडू खडू<ref>खड़ी</ref> करयाले, पाणी मा छोड़याले।
हे धुनार छोरा, मैं पल्या<ref>पार</ref> छोड़ गाड।
पाल्या छोड़ लिजौलू त्वे, पैले<ref>पहले</ref> तराई दियाल।
कनु छै तू धुनार, अधबीच तराई तू लेन्दू,
हजारू को धन दिउलू करोडू की माया।
सुण सुण रुकमणी हजारू को धन,
नी मांगदू, न करोड़ की माया।
जरा रुबसी<ref>सुन्दर</ref> घीचीन<ref>मुँह से</ref> राणी मैं भेना<ref>जीजा</ref> बोल्याल।
हि रि<ref>हिर हिर करके</ref> रि कैक डोंडू लैगे बगण<ref>कहने</ref>,
डोंडू बगण लैगे, दिल लैगे डिगण।
तै दिन रुकमणि राणी रोंदी छ तुडादी<ref>बिलखती</ref>,
ये काला औधूत तैं मैं भेना नी बोलौं।
एक दिन संसार न मरी जाण,
त्वै क तैं मैं कभी भेना नी बोलौं।
डोंडा का डांड तैन ढीलो करीले,
रुकमणि को शरील पंछी-सी उड़ीगे।

ऐथर देखदी पेथर राणी,
हे भेना ठाकुर मैं पल्या छोड़ गाड।
गर्वियों का गर्व तोड़या त्वैन,
धजियों<ref>शान वाले</ref> का तोड़या धज<ref>शान</ref>।
तब भगवान न हैको छदम धारे,
बणी गए प्रभु बांको चुरेड़<ref>चूड़ीवाला</ref>।
हाथ मा धरयालीन<ref>रख दी</ref> चूड़ी अनमन भांति।
चूड़ी पैरयाला तुम स्वामियों की प्यारी,
राजमती<ref>राजकुमारियों</ref> चूड़ी होली, भानुमती<ref>सूर्य</ref> छेको<ref>चमक</ref>।
ढलकदी छणकदी<ref>झूमती हुई</ref> रुकमणी औंदी,
बोल रे बोल चुरेड़, चूड़ियों को मोल?
तै दिन भगवान त्वैन वीं को हात पकड़याले,
राजौं की कन्या छई, क्या बैन बोदी:
हजारू को धन दिऊलू, करोडू की माया।
हे चुरेड़े तू मेरो हात छोड़ दे।
पैली मेरी चूड़ियों को मोल दियाल।
सुण्याल रुकमणि, तू मैं कू-
रुबसी घीचीन भेना बोल्याल।
नौनी रुकमणि रोंदी छ तुड़ांदी,
हेरदी छ देखदी राणी तब बोदी-
हे मेरा भेना, मेरो हाथ छोड़याल!
तब ऐगी रुकमणि मथुरा वृन्दावन,
देख कना ऐन गोकुल का ग्वैर।
सुण रुकमणि बोद कृष्ण भगीवान्-
बिना ब्यौ राणी त्वै नो रखदू।
कठा<ref>इकट्ठा</ref> होई जावा मथुरा का ग्वैरू<ref>ग्वाले</ref>,
ई का साथ मेरो ब्यौ करी देवा।

ग्वैर छोरा क्वी<ref>कोई</ref> बण्या बामण कुई औजी<ref>बाजे बजाने वाले</ref>,
घैंट्या<ref>खड़े किये</ref> केला कुलैं<ref>चीड़</ref> का स्तंभ,
तै दिन तौंकू ब्यौ होई गये।
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पूतना रागसेण रदी कंस की बैण<ref>बहन</ref>।
कना बैन बोदू तब दुष्ट कंगस-
कु जालू गोकल मेरा बैरी मान्यालो?
तब पूतना रागसेण बोदे-मैं जौलू गोकल मां!
तू मेरा बैरी मारी औली त पूतना,
त्वै मैं आदा राज द्योलो।
तब पूतना रागसेण तयार होये।
नहेन्दी व धुयेन्दी तब वा,
स्यूंद शृंगार तब सजौण लगदे।
तब धरे पूतनान मोहनी को रूप,
अपनी दूधियों मांज विष चारियाले,
रमकदी छमकदी जांदी पूतना रागसेण,
रौड़दी-दौड़दी गगे गोकुल का राज।
यसोदा का पास जांद मुंडली नवौदे।
तब पूतना रागसेण कना बैन बोदे-
मैन सूणे दीदी तेरो नौनो होये।
उंडो दे दी दीदी अपणा नौना,
तुमारो बालक दीदी, भलो छ प्यारो।
कृष्ण भगवान गोद मा गाडदे।
तब पूतना रागसेण लाड करदे,
हाती खुटी फलोसदी, घीची<ref>मुँह</ref> छ पेंदी<ref>प्यार</ref>।
कृष्ण भगवान जी दीनू का दयाल,
नरु का नारैन भक्तू का राम।

शब्दार्थ
<references/>