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नागरजा / भाग 3 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हे बिष्णु तब दूदी पेण लैगे,
हे देव जी विष तेरा घिचा पर
अमृत त बणीगे।
पूतना हेरदी रै यशोदा को बालीक,
अभी मरदो तभी छ मरदो।
निराशे गए वा जब दूद्यौं दूँद नी रयो!
तब बोलदे-हे दीदी यशोदा,
अपणा बालक तू फुँडो<ref>वापस</ref> गाडीयाल<ref>ले ले</ref>।
तब विष्णु भगवान वीं की छाती पर चिपटीन
पूतना को सारो खून चूसयाले!
तब पूतना बणैयाले आम जनी गुठली,
बांज जनो बकल!
बराँदी<ref>बड़बड़ाती</ref> तैं तरांदी<ref>बिलखती</ref> पूतना रागसेण,
भगवान वा मारी तिने।

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छया धेनु का चरैया हे मोहन,
ह्वैल्या द्वारिकानन्दन हे मोहन।
छया वसुदेव का जाया हे मोहन,
ह्वैंल्या देवकी का लाडा हे मोहन।
छई दई को दूपकी, हे मोहन,
ह्वैल्या दूद की बिराली हे मोहन।
त्वैकू बार मास होला हे मोहन,
बोण घोर से प्यारा हे मोहन।
तेरी नौसुन्या मुरुली हे मोहन,
एक भौण<ref>लय</ref> मा मिलौंद हे मोहन।
औदू बाँसुली बजौंदू हे मोहन।
यूँ चीडू की बणायों हे मोहन,
तेरी बार बीसी धेनु हे मोहन,
ओडू नेडू औंदन, हे मोहन।
त्वै बिना ग्वैरू की, हे मोहन,
सभा नी शोभदी हे मोहन।
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चला ग्वाल बाल भायों, तुम खेला गेंदुवा<ref>गेंद</ref>,
सोना को गेन्दुवा मेरो, विष्णु पटन मढ़यूँ छ।
सोना को बण्यू छ, चांदी का घुँघर।
हे प्रभु सोवन गेन्दुवा तेरो हाथ नी लियेंदू,
भ्वां नी धरेन्दू!
तब खेलण जाँा सब कुंज वन मा,
कुंज वन मा खिल्या बार भाँति का फूल।
अनमन भाँति की औदे फूल की वासिनी,
भौंरा छन गुँजणा, मारी<ref>मधुमक्खी</ref> रूणाणी छन,
कि अनमन भाँति की केसर लेला।
सारा कुंज वन मा खेल गेन्दुवा।
ब्रज की गुजन्यों संग खेल गेन्दुवा!
छट छुटे गेंदुवा जमुना मा गिरिगे।
वीं गैरी<ref>गहरी</ref> जमुना माछीन<ref>मछली ने</ref> धूल्याले<ref>निगल ली</ref>।
तब विष्णु भगीवान धावड़ी<ref>आवाज</ref> लगौंदा।
ग्वाल बाल सब घर बोड़ी ऐन,
जिया को बालीक जभुनी छाला छुटिगे।
तब जिया जसोमती इना बेन बोदी-
हे प्रभो, मेरो बाला जमुना छाला रैगे।
सबूका बाला घर ऐन, मेरो कृष्ण नी आयो।
जागदी रै गये त्वै स्या राणी सत्यभामा।
काली नाग रंदो तैं गरी जमुना,
हे मेरा कृष्ण नाग डसी जालो।
कृष्ण भगीवान इना रैन बली,
गाडी दिने गेन्दुवा, साधी लिने नाग!
भेंटद भाँटद छन गेन्दुवा कृष्ण भगवान,
अनमन भाँति को खेल लाँद गोविन्द।
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ओडू<ref>पास</ref> नेडू ऐगे कातिक मास,
कातिक मास बगवाली<ref>दिवाली</ref> ऐन, जोन्याली<ref>चाँदनी</ref> रात!
बग्बाल्यों का खेल मधुवन मा,
रचला रास राधिकोंका संग।
सात सई<ref>सौ</ref> गुजरी, आठ सई राणी,
नौ सई आछरी<ref>अप्सरा</ref> तेरी मोहन!
रूप को रौंसिया छई, फूलू को हौंसिया।
राधिकौंका संग खेल बोल,
करदो रास पोथल्यों<ref>चिड़ियाँ</ref> को ख्याल!
तब गुजरी बोदीन, मोहन मायादार,
हाथी मिलैक खेल लौला।
तब मोहन नारेणन मोहन रूप धरे,
मोहन रूप धरे गाडे मोहन मुरली!
तब सभी राधिका राम, मोहित होई गैन,
कि चित होइगे चंचल देव्यो,
मन होइगे उदास।
ये मुरल्यान हमारो मन मोहित देव्यो।
तब गुजन्यों का साथ हाथी मिलैक,
नाचदो मोहन कालिया नाच।
जोन्याली रातू मा तब पूरणमासी की
खिलदी जोन छन कई मधुवन मा।
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चल दीदी<ref>छोटी बहन</ref> भुल्यों, ल्यूला असीनान,
कठा होई गैन राम जी की गुजरी।
राम जी की गुजरी खट की आछरी।
चला दीदी भुल्यों जमुना का छाला<ref>किनारा</ref>,
तब तउँ देव्योंन शृंगार सजाये,
दांतुड़ी मंजैन जई जसो फूल,
स्यूंदोली<ref>माँग</ref> गाडीन<ref>निकाली</ref> देव्योन धौली<ref>धौली गंगा</ref> जसो फाट,
हाथ की पौंछी पैरीन, गला की कंठी,
रमछम बाजेन देव्यों, खुटौं<ref>पैरों</ref> का घूंघर।
रमकदी छमकदी गैन वीं नीली जमुना,
वीं गैरी जमुना देव्यों, जमुनी छाला।
जमुनी का छाला देव्यों, ल्यूला असीनान!
कपड़ी गाड़ीक देव्यों, भुयाँ<ref>जमीन</ref> धरी देवा,
नंगी ह्वैन गुजरी, जल मा गैन।
तबरी ए गैन विष्णु भगवान,
नंगी गुजरी देखेन तौन,
देो कपड़यों को ढेर जमुनी छाला!
लीला पुरुष छा भगवान,
कपड़ी उठैक डाला चढ़ी गैन।
मोहन नारेण गाड़े तब मोहन मुरली,
तीन ताल मुरली आज सुणौंदा।
नंगी गुजरियों सूणे मोहन बांसुली,
चकोर की बच्ची सी तपराण<ref>तड़पने</ref> लै गैन।
तब देखे डाला मा तौन नारैण,
हे कनो भाग ह्वैलो! शरम खांदीन।
तब धरे देव्योंन दूद्यों<ref>स्तन</ref> मती<ref>पर</ref> हाती<ref>हाथ</ref>
ओ नंगी गुजरी जल मां बैठेन।
हाथ जोड़दाा मोहन, माथो नवौंदा,
हमारा वस्तरदी द्या, रख्याला लाज।
मुलमुल हैंसदा तब मोहन छलिया,
रतन्याली आंख्योंन मोहित ह्वैग्या।
क्यक गुजन्यों, नंगी गै छई जल मा?
आज बटी<ref>से</ref> देव्यों नंगी न नह्यान!
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शब्दार्थ
<references/>