भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नागार्जुन की कविता / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सन उन्नीस सौ अठानवें के
ग्यारहवें महीने की पांच तारीख को
नहीं रहे बाबा नागार्जुन
यह खबर मैंने नहीं पढ़ी

पढ़ रहा था मैं
एक जीती जागती
नागार्जुन की कविता
यानी जीवन से भरी सरिता

रचनाकाल:1998