भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नागिन बरसात-आबोॅ नीं फुरती सें / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
आबोॅ नीं फुरती सें
हमरी प्रियां
मिलै लेॅ फाटै छै,
हमरोॅ हिया।
बोलैला पर आबै रहौ
झटकी केॅ पास।
बाँहीं में लागै छेलै,
कत्ते हुलास।
आबेॅ कहाँ सुनै छौ?
तोहं हमरऽ हाँक?
गरऽ बझी जाय छै,
करेजऽ दू फाँक।
उठी-उठी बैठे छीहौं,
तोरे याद लिखै छीहौं।
केकरा सुनैबै हे!
तोरैह नैं पाबै छीहौं।
पागल नाँकी बीतै छै,
हमरऽ दिन रात।
ऊपरऽ सें फुफकारै छै,
नागिन बरसात।