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नागों का डेरा / ओमप्रकाश सारस्वत
Kavita Kosh से
नावों पर
नागों का
डेरा है
बचकर चढ़ना
ध्रुव को
उल्काओं ने
घेरा है
बचकर बढ़ना
आरतियों के दीपक
धूमायित हैं
मनुहारों के सप्तक
शंकायित हैं
ओ गीतों के रसिया !
साथी ! श्रुतियों को बचकर गढ़ना
सागर से पूर्व
मरु ने सरस्वती लूटी
अपराधों के सम्मुख
साक्षी पड़ गई झूठी
इसीलिए तुम
शातिर के सिर दोष
बचकर मढ़ना
आस्थाओं के तल को
ही जब छल छेदेगा
तब विश्वासों के पुष्पक
भूमि सूंघेंगे ही
अतः सावधान !
तुम कारबाइड गैसों के रण में
बचकर लड़ना
सब बिकी हुई रौशनियां हैं
चौराहों पर
सब पिटी हुई चांदनियां हैं
दोराहों पर
सब चोर-अंधेरे पथ में
पाकेटमार
सरल तुम
बचकर अड़ना