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नाच मेरे भाव छम-छम / अमरेन्द्र
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नाच मेरे भाव छम-छम,
क्या हुआ आँखें दिखे नम !
घाट मरघट के सजे, तो
घुँघरुएँ पीछे रहे क्यों ?
रुदन का रव तेज ऐसा
हास तब नीचे रहे क्यों ?
प्राण पुलके, साँस गाए
फागुनी तू पास आओ !
शिशिर को पीछे किए अब
चैत संग मधुमास आओ !
आज जीवन जी उठा है
पीर उठती भी, तो कम कम।
आज तक तो मृत्यु की ही
साधना में समय बीता,
प्यास जब जी पर हुई, तो
घट दिखा हर एक रीता;
चूक ऐसी क्या हुई जो
आँसुओं का वर मिला है,
आँधियों के बीच रहने
के लिए यह घर मिला है;
बीच नभ में चाँद निकलो,
बहुत बरसा मेघ झमझम !