भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाटक / रामधारी सिंह "दिनकर"
Kavita Kosh से
समय तुरत क्यों हो जाता उड्डीन,
प्रेमी का अभिनय जब हम करते हैं?
और मंच क्यों हो जाता संकीर्ण,
कभी सन्त का बाना यदि धरते हैं?
किन्तु, विदूषक बनने पर भगवान!
जानें, क्यों यह जगह फैल जाती है!
और हमारा करने को सम्मान
सभा रात भर बैठी रह जाती है!